खुशखबरी 👉👉अन्य राज्यों से लगभग 1लाख 37हजार लोग अपने उत्तराखंड लौट रहे
सरकार इन्हें लाने के लिए चाक-चौबंद व्यवस्थाएं जुटाने में लगी। देखिए किस राज्य से कितने लोग आ रहे👇
वहीं देहरादून से लौट रहे लोगों पर हमला👉 घटना 2 मई को यमकेश्वर क्षेत्र में घटी
ग्रामीणों ने बाहर से गांव लौट रहे लोगों को बनाया बंधक
रोडवेज बस ड्राइवर, पटवारी के साथ भी की गई मारपीट
पौखाल गांव के पास बाजार की घटना
मौके पर पहुँची पुलिस ने दो लोगों को किया गिरफ्तार।
8 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज। हमलावर डरे हुए थे कि कहीं गांवों में कोरोना बीमारी न फैले
उपरोक्त घटना दुर्भाग्यपूर्ण है परंतु कहीं हम आगे ऐसी ही लड़ाइयों में तो नहीं फसेंगे?
प्रधानों को दी गई बड़ी जिम्मेदारी👉 गांव में लौटने वाली वासियों को क्वॉरेंटाइन रखने तथा उनकी जांच कराने की जिम्मेदारी प्रधानों को। जिन लोगों में बीमारी के लक्षण ना दिखे उन्हें होम क्वॉरेंटाइन किया जाएगा
ग्रामीणों से सुझाव👉सरकार की यह अच्छी पहल है परंतु इन लोगों को गांव के निकट के बाजारों में उपलब्ध होटलों में क्वॉरेंटाइन किया जाना चाहिए
गांव की ओर लौट रहे प्रवासियों को बहुत बधाइयां तथा स्वागत साथ ही प्रार्थना है कि अपना और अपने लोगों के स्वस्थ रहने की कामना वह इंतजाम भी करें
सरकार द्वारा बाहर से आने वाले लोगों को होम क्वॉरेंटाइन रखने पर जोर दिया जा रहा है। परंतु कुछ बड़े सवाल आखिर चिंता बढ़ाने वाले हैं —–
आखिर गांव में एक या दो कमरों के मकान में होम क्वॉरेंटाइन कैसे संभव है? गांव में आवासीय व्यवस्थाओं की स्थितियों से सभी भलीभांति परिचित हैं। अधिकांश परिवारों के पास एक या दो कमरों के ही मकान हैं । शौचालय इत्यादि की समुचित व्यवस्था नहीं है। बड़ी संख्या में ऐसे घर मिलेंगे जहां गौशाला और आवासीय भवन एक ही है।
बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहां पानी भरने पारंपरिक नौला, मंगरा या धारा पर जाते हैं अथवा सार्वजनिक नल पर
ऐसे में चिंता का विषय है कि आखिर बाहर से लौट रहे लोगों को अलग कैसे रखा जाए? प्रधान जी को जिम्मेदारी दे दी परंतु कहीं टोका टाकी के चक्कर में प्रधान जी लड़ाई में न फंस जाएं? यह चिंता प्रधानों के माध्यम से ही आ रही
👉इस चिंता को एक उदाहरण से समझते हैं– जनपद चमोली के एक गांव में कुल 80 लोग लौटेंगे।150 परिवारों वाले इस गांव में ग्रामीण परंपरागत पेयजल स्रोत पर पानी भरते हैं। गांव में अधिकांश लोगों के एक या दो कमरों के मकान हैं। बहुत सारे लोगों के आवास और गौशाला एक ही भवन है।
आजकल खेती कार्य का वक्त है। सभी लोग सामूहिक रूप से खेतों में भी जा रहे हैं।
ऐसे में किसी को सामाजिक दूरी बनाए हुए रख पाना असंभव प्रतीत होता है
👉एक अन्य उदाहरण— एक गांव में कुछ समय पूर्व एक मरीज इलाज करवाकर लौटा। इसे होम क्वॉरेंटाइन रखने के निर्देश हुए। प्रधान जी को मुस्तैद किया गया। दो कमरों के मकान में बड़े परिवार के साथ क्या उस मरीज को क्वॉरेंटाइन रखना संभव है? शायद नहीं! इस परिवार के लोग सारे गांव में घूम रहे । ऐसे में प्रधान जी कुछ टोका टाकी कर दें , समझाने लगे तो लड़ाई की नौबत आ गई
उपरोक्त जैसे उदाहरणों की गांव में भरमार है।
ऐसे में बड़ा सवाल और चिंता का विषय है कि भगवान न करें यदि गांव में लौटने वाला कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित हुआ तो क्या हम गांव को बचा पाएंगे?
🙏सरकार तथा व्यवस्थापकों से प्रार्थना है कि गांवों के निकटवर्ती बाजारों में उपलब्ध होटलों को क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाकर बाहर से आने वाले लोगों को इन्हीं में 14 दिन रखें तो मन शंकाओं से दूर रहेंगे और तन की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो जाएगी🙏