गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में “नागरिकता संशोधन कानून 2019: एक अवलोकन” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। पूरे देश मे इस विषय पर विमर्श हो रहा है । पूरे देश मे इस कानून को लेकर दो मत प्रस्तुत किये जा रहे है । एक मत है कि ये कानून किसी की नागरिकता नही छीन रहा है बल्कि पड़ोसी देशों के धार्मिक रूप से पीड़ितों को नागरिकता देगा। दूसरा मत है कि यह कानून संविधान की प्रस्तावना में उल्लखित “धर्मनिरपेक्षता” के विचार के खिलाफ है।
इस कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो० एम०एम० सेमवाल ने इस कानून के उद्देश्यों की जानकारी देते हुए कहा कि यह कानून सविधान में उल्लिखित किसी भी अनुच्छेद का उलंघन नही करता है। हमें मानवीय दृष्टिकोण के साथ अपनी सीमायें भी देखनी होंगी । सभी राजनीतिक दलों को वोट की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में आगे बढ़ना चाहिए।
कार्यक्रम में कानून की सामान्य जानकारी पी०पी०टी० के माध्यम से प्रो० सीमा धवन ने दी।
अतुल सती ने कहा कि हमें इस समय शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार पर बहस करनी चाहिए न कि धर्म को आधार बनाकर नागरिकता तय करने में बहस करनी चाहिए। इस तरह अशांत रह कर कोई भी देश विकास नही कर सकता है।
पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुधीर जोशी ने कहा कि यह कानून देश हित में है। इसके लिए लोगों के बीच भ्रम फैलाया जा रहा है। जबकि यह कानून किसी की भी नागरिकता नही छीनता है। बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देता है।
विश्वविद्यालय प्रतिनिधि अंकित उछोली ने कहा कि यह कानून ने देश के धर्मनिरपेक्षता के विचार के खिलाफ है। सरकार को इस कानून पर व्यापक बहस करनी चाहिए थी न कि इस तरह थोपना चाहिए।
शोध छात्रा लूसी ने कहा कि इस कानून में धार्मिक शोषित की जगह केवल “शोषित” शब्द होना चाहिए था। शोषितों की मदद करना भारत की ” वसुधैव कुटुम्बकम” की परंपरा रही है। इस से किसी को विरोध करने की जरूरत भी नही।
शिक्षा संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो० पी०के० जोशी ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश मे सहमत व असहमत होने का अधिकार है लेकिन सहमति और असहमति व्यक्त करने के लिए हिंसा का सहारा नही लेना चाहिए।
शिक्षा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो० एस०एस० रावत ने कहा कि जो इस क़ानून के खिलाफ है सरकार को उन के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए और उनकी शिकायतों को दूर करना चाहिए। जिस से देश मे सामान्य स्थिति पैदा हो सके।
मानविकी एवं समाज विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो०सी०एस सूद ने इस कानून के बनने के कारणों की जानकारी तथा इसके साथ ही भारत विभाजन के इतिहास की जानकारी देते हुए कहा कि भारत ने तब धर्मनिरपेक्षता को चुना जबकि इन देशों ने धार्मिक राज्य बनना चुना। जो भी अल्पंसख्यक उन धार्मिक देशों में पीड़ित है उन को इस कानून के तहत नागरिकता दी जा रही है। इस लिए हमारे देश के किसी भी अल्पसंख्यक को डरने की जरूरत नही है।
इस कार्यक्रम का संचालन शिवानी पांडेय ने किया।
प्रो० सीमा धवन ने कार्यक्रम का समापन करते हुए सभी का धन्यवाद दिया।
कार्यक्रम में प्रो०राकेश कुंवर, डॉ अरुण शेखर बहुगुणा, डॉ० राकेश नेगी,डॉ० आशुतोष गुप्त, डॉ० जे०पी०भट्ट, डॉ मनीष मिश्रा, डॉ गिरीश भट्ट, तथा शोध छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।