गढ़वाल विश्वविद्यालय के कला एवं निष्पादन केंद्र चौरास में राजनीति विज्ञान विभाग एवं उमंग के संयुक्त तत्वाधान में निर्मल चंद्र डंडरियाल के निर्देशन में बनी लघु फिल्म “मोती बाग” का प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म में पौड़ी के कल्जीखाल ब्लॉक के सगुड़ा गांव के 83 वर्षीय किसान विद्या दत्त शर्मा के बनाए “मोती बाग” की कहानी है। इस बाग में वे अनेक तरह की सब्जियां व अनाज पैदा करते है। इस फिल्म में उत्तराखंड की कृषि, बागवानी, जल संरक्षण, श्रम साधना, पलायन, खेती से लोगों के अलगाव जैसे सवालों को दिखाया गया है। इस फिल्म की खास बात यह थी कि इस फिल्म में केवल सवालों को ही नहीं बल्कि समाधान को भी दिखाया गया है। इस कार्यक्रम में फिल्म के निर्देशक निर्मल चंदन रियाल भी मौजूद रहे जिन से छात्रों ने फिल्म व पलायन से जुड़े सवालों को पूछा और उन्होंने सादगी और सहजता के साथ उन सवालों का जवाब दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एमएम सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड का सबसे बड़ा सवाल पलायन का है जो कि सरकारों के कारगर एवं दीर्घकालीन नीतियां न बनाने के कारण पैदा हुआ है। यह फिल्म “मोती बाग” पलायन के सवाल को रेखांकित करता है और सवाल के साथ-साथ इसका हल भी लोगों को देता है। पलायन के दुष्परिणाम केवल सामाजिक ही नहीं अपितु राजनीतिक भी हुए है। पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों का पलायन होने से विधानसभा में पहाड़ का प्रतिनिधित्व लगातार कम हो रहा है जो कि उत्तराखंड के राज्य बनने की संकल्पना के खिलाफ है। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हमारे हिमालय क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगे हैं यहां लोग नहीं रहेंगे तो यह हमारी सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
कार्यक्रम में उत्तराखंड के मशहूर कवि, लेखक व रंगकर्मी गणेश कुकशाल गणी ने फिल्म के निर्देशक निर्मल चन्द्र डंडरियाल के जीवन व इस फिल्म बनाने की यात्रा व संघर्ष को छात्रों के सम्मुख रखा उन्होंने कहा कि अगर श्रम व इच्छाशक्ति हो तो किसान गरीब नहीं बल्कि विद्या दत्त शर्मा जैसे आत्मनिर्भर व दूसरों को रोजगार देने वाले बन सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने ऑस्कर के लिए चुने जाने की प्रक्रिया को भी छात्रों के सम्मुख रखा।
अध्यक्षीय संबोधन में प्रोफेसर आर सी रमोला ने कहा कि यह फिल्म पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन का वास्तविक चित्रण है जो कि हमारी यादें ताजा करती है। इस फिल्म को बनाते समय निर्देशक ने पहाड़ के जीवन की वास्तविकता को जीवंत रखा है।
प्रोफेसर दिनेश सकलानी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि गढ़वाल के लोगों में आधुनिकता के दौर में श्रम करने की कमी देखने को मिल रही है जोकि विद्या दत्त शर्मा के चरित्र से सीखने की जरूरत है। अपने इतिहास को समझने की जरूरत इस समय अधिक हो गई है ताकि हम अपने पूर्वजों के संघर्षों से सीख ले सके।
इस कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा शिवानी पाण्डेय ने किया।
कार्यक्रम में गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र अधिष्ठाता कल्याण प्रोफेसर पीएस राणा,प्रो हिमांशु बौड़ाई, इंजीनियर महेश डोभाल, डॉ सर्वेश उनियाल, मोहन नैथानी, प्रोफेसर बी पी नैथानी, पूर्व कुलपति प्रो सी एम शर्मा, एस के गुप्ता, डॉ संजय पांडे, डॉ कुलीन जोशी, डॉ पूजा सकलानी, डॉ आलोक सागर गौतम व विभिन्न संकायों के छात्र छात्राएं मौजूद रहे।
इस अवसर पर फ़िल्म के निर्देशक निर्मल चन्द्र ने बच्चों के साथ चर्चा करते हुए कहा कि केवल सरकार के न भरोसे बैठ कर उद्यमिता व रोजगार के नए अवसर तलाशने होंगे। और उन्होंने ये भी कहा कि इस तरह की लघु फिल्में लोगों के सहयोग से ही बनती है।
छात्रों के बीच इस फ़िल्म को लेकर बहुत उत्साह देखने को मिला। और सभी ने उन्हें ऑस्कर के लिए शुभकामनाएं भी दी।