पहाड़ी संस्कृति 👉 जाने क्यों मनाई जाती है ईगास बग्वाल, ईगास की छुट्टी के बहुत करीब पहुंच गए “हम पहाड़ी”

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अब ईगास की छुट्टी के बहुत करीब पहुंच गए हैं “हम पहाड़ी” । इस संदर्भ में उत्तराखंड सचिवालय संघ तथा पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन ने भी माननीय मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष द्वारा पूर्व में ही एक पत्र माननीय मुख्यमंत्री जी को दिया गया है।

इगास-उत्तराखण्ड की लुप्त होती दीपावली

शायद ही किसी गैर उत्तराखण्डी ने इगास के बारे में सुना होगा, दरअसल आजकल के पहाडी बच्चों को भी इगास का पता नहीं है कि इगास नाम का कोई त्यौहार भी है, दरअसल पहाडीयों की असली दीपावली इगास ही है, जो दीपोत्सव के ठीक ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है, दीपोत्सव को इतनी देर में मनाने के दो कारण हैं पहला और मुख्य कारण ये कि – भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आने की खबर सूदूर पहाडी निवासीयों को ग्यारह दिन बाद मिली, और उन्होंने उस दिन को ही दीपोत्सव के रूप में हर्षोल्लास से मनाने का निश्चय किया, बाद में छोटी दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक सबको मनाया लेकिन ग्यारह दिन बाद की उस दीवाली को नहीं छोडा।
पहाडों में दीपावली को लोग दीये जलाते हैं, गौ पूजन करते हैं, अपने ईष्ट और कुलदेवी कुलदेवता की पूजा करते हैं, नयी उडद की दाल के पकौड़े बनाते हैं और गहत की दाल के स्वांले ( दाल से भरी पुडी़) , दीपावली और इगास की शाम को सूर्यास्त होते ही औजी हर घर के द्वार पर ढोल दमाऊ के साथ बडई ( एक तरह की ढोल विधा) बजाते हैं फिर लोग पूजा शुरू करते हैं, पूजा समाप्ति के बाद सब लोग ढोल दमाऊ के साथ कुलदेवी या देवता के मंदिर जाते हैं वहां पर मंडाण ( पहाडी नृत्य) नाचते हैं, चीड़ की राल और बेल से बने भैला ( एक तरह की मशाल ) खेलते हैं, रात के बारह बजते ही सब घरों इकट्ठा किया सतनाजा ( सात अनाज) गांव की चारो दिशा की सीमाओं पर रखते हैं इस सीमा को दिशाबंधनी कहा जाता है इससे बाहर लोग अपना घर नही बनाते। ये सतनाजा मां काली को भेंट होता है।

ईगास बग्वाल त्यौहार माधो सिंह भण्डारी की तिब्बत विजय की याद में मनाया जाता है।

1640 से 1650 ई के आसपास गढ़वाल की सेना माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में तिब्बतियों से लड़ने गयी थी । तिब्बतियों का आतंक बढ़ गया था, व वे टिहरी में उप्पू तक बढ़ आये थे। क्योंकि पूरी सेना, सारे जवान युद्ध में थे अतः दीवाली नहीं मनाई गई । 11 दिन बाद विजय की सूचना मिलने पर दीवाली मनाई गई एवं राजा महीपत शाह ने हर वर्ष दीवाली मनाने के आदेश दिये।

तभी से हमेशा मनाई जाती है ईगास बग्वाल।

माधो सिंह ने दापाघाटी का किला और मंदिर भी जीत लिया था, एवं वहां सीमा निर्धारक ‘ओडा ‘ स्थापित किया।

माधो सिंह से तिब्बती(भूटिया) इतने डरते हैं कि आज भी जिस व्यक्ति पर भूटिया भूत लगता है, झाड़ फूंक वाला भूत भागते हुए आणे देता है, “त्वे माधो सिंह भंडारी की आण पड़े” और भूत तुरंत भाग जाता है।


आप सभी को आने वाली इगास की शुभकामनाओं के साथ ..,

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