राष्ट्रीय स्मारक नहीं बन पाई अल्मोड़ा जेल। जिस जेल में पंडित नेहरू, सीमांत गांधी जैसी हस्तियां रही वहां अब रहते हैं अपराधी

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(राजेन्द्र रावत)

अल्मोड़ा अगस्त क्रांति के अवसर पर विशेष———

अल्मोड़ा की ऐतिहासिक जेल में आजादी के आन्दोलन का महान इतिहास रहा है आजादी का आन्दोलन जब निर्णायक दौर में था तब 1930 से 1945 के बीच देश के कई महान नेताओं को अल्मोड़ा की इस ऐतिहासिक व एकांत जेल में रखा गया । पंडित जवाहर लाल नेहरू दो बार इस जेल में लाये गये पं नेहरू के अलावा खान अब्दुल गप्फार खान, सीमान्त गांधी, पं गोविन्द बल्लभ पंत, सरला बहन सहित कई महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इस जेल में रखा गया ।
लेकिन विडम्बना है जिस जगह पर रहकर देश के सर्वोच्च नेताओं ने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया तथा अपने प्राण तक न्यौद्दावर कर दिये उस जेल में आज हत्या, लूट बलात्कार जैसे अपराधों को अंजाम देने वाले कुख्यात अपराधियों को रखा जाता है । इस ऐतिहासिक जेल को राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए करीब 23 वर्ष पूर्व शासन को प्रस्ताव भेजा गया था । तब प्रस्ताव में यह तय हुआ था कि अल्मोड़ा में नई जेल बनाकर जेल के पुराने भवन को राष्ट्रीय स्मारक का रूप दिया जायेगा ताकि बाहर से आने वाले पर्यटकों व शोध कत्र्ताओं के लिए यह ऐतिहासिक जेल आकर्षण का केन्द्र बन सके लेकिन यह प्रस्ताव आज भी शासन स्तर पर लटका पड़ा है ।
आजादी के आन्दोलन के दौरान पं जवाहर लाल नेहरू इस ऐतिहासिक जेल में दो बार बंद रखे गये सन् 1930 से 1945 के दौरान खान अब्दुल गफ्फार खान, पं गोविन्द बल्लभ पंत, आर्चार्य नरेन्द्र देव, कामरेड पीसी जोशी, सरला बहन, सैय्यद अली जौहर, कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पाण्डे, सहित कई स्वंत्रता सेनानियों को इस जेल में ढूंस दिया गया जो काफी समय तक इस जेल में कैद रहे ।
पं जवाहर लाल नेहरू पहली बार 28 अक्टूबर 1934 से 3 सितम्बर 1935 तक इस जेल में रहे बाद में 10 जून 1945 को पं नेहरू व आचार्य नरेन्द्र देव को साथ – साथ अल्मोड़ा जेल लाया गया और 15 जून 1945 को दोंनों नेता अल्मोड़ा से साथ रिहा हुए जेल मे ंरहने के दौरान पंडित नेहरू ने अपनी आत्म कथा के ई पृष्ठ इसी जेल में रहकर लिखे, जिस कमरे में तब पं नेहरू को रखा गया था उसे अब नेहरू बार्ड के नाम से जाना जाता है जिस कमरे में पं नेहरू रहे वहां अलग रसोई के साथ ही पुस्तकालय भी था आज नेहरू वोर्ड में पं नेहरू का चरखा, कुछ वर्तन, दीपदान आदि समान एक कोने में पड़ा है ।
अंग्रेजों के शासन काल में 1872 में अल्मोड़ा में ऐतिहासिक जेल का निर्माण किया गया करीब 147 वर्ष पुरानी इस ऐजिहासिक जेल की दशा जीर्ण क्षीर्ण है जेल में देश की आजादी के लिए संघर्षरत महान स्वतंत्रता सेनानी को रखा जाता था वहीं आज खूंखार अपराधी रखे जाते है इस ऐतिहासिक जेल को संरक्षित स्मारक बनाने तथा जेल को अन्यत्र शिफ्ट करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा करीब 23 वर्ष पूर्व प्रदेश शासन को प्रस्ताव भेजा गया था लेकिन इस पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद तत्कालीन राज्यपाल मार्गेट लाल्वा ने भी अपने कार्यकाल के दौरान अल्मोड़ा जेल को राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए अपने स्तर से निदे्रष दिये थे तब जिला प्रशासन द्वारा नई जेल बनाने के लिए स्यालीधार मे ंभूमि भी चिन्हित कर ली गयी थी लेकिन उसके बाद नई जेल बनाने की बात संभवतया फाइलों में ही बंद होकर रह गयी इस ऐतिहासिक जेल को राष्ट्रीय स्मारक बनाने हेतु शासन स्तर पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा भी कोई दबाव नहीं बनाये जाने से इस पर कार्य आगे न बढ़ पाना चिन्ताजक ही कहा जा सकता है ।

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