गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में साप्ताहिक परिचर्चा में भारत में जल संरक्षण, महत्व एवं चुनौतियां विषय पर चर्चा की गई। वर्तमान समय में जल संकट से दुनिया समस्याओं का सामना कर रही है और हमारा देश भी संकट से अछूता नहीं रहा। चेन्नई में जल संकट ने भारत में एक बड़ी बहस को शुरू किया। यह संकट आज शहरों से बढ़कर गांवों की तरफ बढ़ गया है, जो कि भविष्य में एक बड़ी चिंता का कारण बन सकता है
इस अवसर पर विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर सी एस ने कहा कि तापमान में वृद्धि के कारण ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं जो कि भविष्य में जल संकट को बढ़ाएंगे। चेन्नई का जल संकट प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव जनित संकट है । क्योंकि वहां भूजल के सभी स्रोतों पर भवन निर्माण किया जा चुका है। जल संकट के समाधान के लिए शहरों को व्यवस्थित तरीके से बसाना पड़ेगा जिस में वर्षा जल संरक्षण की पूरी व्यवस्था हो।
प्रोफेसर आर एन गैरोला ने कहा कि पानी के प्राकृतिक स्रोत लगातार खत्म हो रहे हैं जो कि अलग-अलग समस्याएं लेकर हमारे सामने आ रहा है । जंगली जानवर आज शहरों में आ रहे हैं क्योंकि जंगलों में पानी के सभी जल स्रोत दावानल और अन्य कारणों से सूख गए हैं। सरकार की जल संरक्षण की नीतियां लोगों तक क्रियान्वित नहीं हो पा रही हैं। चुनौतियां बनी हैं, उसमें लोगों से सहयोग लेना होगा ।
प्रोफ़ेसर हिमांशु बौढ़ाई ने कहा कि इतिहास में सभी सभ्यताएं पानी की प्रचुरता वाली जगह में ही स्थापित हुई हैं। इन सब सभ्यताओं के खत्म होने का कारण पानी का खत्म होना ही रहा। चेन्नई शहर एक समय में तालाबों का शहर था । लेकिन अव्यवस्थित निर्माण कार्यों ने उन सभी तालाबों को खत्म कर दिया इसका परिणाम पूरी दुनिया ने देखा। जल जंगल जमीन को एक साथ सुरक्षित किए बिना संकट संकट से निजात नहीं पा सकते। जल संरक्षण के लिए हमें अपने घरों से शुरुआत करनी होगी ।
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एम एम सेमवाल ने कहा कि पानी का सबसे बड़ा केंद्र हिमालय है । इसे एशिया का वाटर टावर कहा जाता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण यहां ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं । पानी में प्राकृतिक रूप से कोई कमी नहीं आई है लेकिन भूजल में जरूर कमी हो गई है। इसका कारण है कि हम वर्षा जल को संरक्षित नहीं कर पाए और ना ही अपने प्राकृतिक जल स्रोत संरक्षण के उपाय कर पाए । जल संरक्षण के लिए फिर से तालाब और छोटे-छोटे चेक डेमो का निर्माण बहुत लाभदायक होगा । यदि आज हम पानी बचाएंगे तो कल हमें पानी ही बचाएगा । हिमालय जल का अपार भंडार है इसलिए इसे एशिया का वाटर टावर जल स्तंभ भी कहा जाता है देश में उपलब्ध कुल 4000 अरब घन मीटर पानी में 80 फ़ीसदी हिस्सेदारी हिमालय की है हिमालय से निकलने वाली 12 नदियों से साल भर में लगभग 1275 अरब घन मीटर पानी बहता है भारत की 40 फ़ीसदी जनसंख्या इसके संसाधनों पर निर्भर है।गंगा एक नदी नहीं अपितु भारतीय संस्कृति एवं आर्थिक व्यवस्था का आधार है गंगा हमारी जीवन रेखा है गंगा जल पर हमारा समाज, संस्कृति एवं रोजगार निर्भर है यदि आज हम पानी बचाएंगे तो कल हमें पानी बचाएगा अन्यथा सब कुछ खत्म हो जाएगा इसलिए हमें जल का सम्मान करना होगा।
इस अवसर पर विभाग में एक संकल्प भी पारित किया गया कि जल संरक्षण के लिए हम सभी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदारी लेंगे।
परिचर्चा में शोध छात्रा पूजा नेगी ने कहा कि जल संरक्षण के लिए व्यक्तिगत व सामूहिक जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक को लेनी चाहिए ।घरों से जल संरक्षण की शुरुआत की जानी चाहिए।
शोध छात्रा ममता उप्रेती ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को व्यवहार में परिवर्तन कर जल संरक्षण में अपनी अपनी भागीदारी निभानी चाहिए। परिचर्चा का संचालन शिवानी पांडेय ने किया और कहा कि जल संरक्षण के लिए नीतियां स्पष्ट बनाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर गौरव डिमरी, अरविंद नारायण, शहजाद चौधरी, प्रेरणा, मीनाक्षी, आरती, वर्षा,कविता, भारती आदि मौजूद थे