सर्वविदित है कि वर्तमान में मुख्य रूप से भूमि व भवन पंजीकरण के माध्यम से ही स्थान शुल्क के रूप में राजस्व प्राप्ति होती है। अब शासन के वित्त विभाग द्वारा निर्देश निर्गत किए गए हैं कि विभिन्न निकायों संस्थानों द्वारा निर्मित दुकानों/ भवनों आदि के विक्रय या लीज/ ठेकों/अनुबंध के माध्यम से आवंटित करना; पार्किंग ठेके, विभिन्न प्रकार के कार्य आवंटन/शपथ पत्र/समझौता अनुबंध समझौता अनुबंध/सहमति पत्र आदि पर स्टांप शुल्क निर्धारित कर भी बड़ा राजस्व प्राप्त किया जा सकता है।
सचिव वित्त श्री अमित नेगी ने कहा है कि राज्य के सतत् एवं चिरस्थायी चहुमुखी विकास हेतु वित्तीय संग्रहण प्रणालियों का सुद्धढ़ीकरण एवं पारदर्शी होना आवश्यक है। इसमें सबसे बड़ी बाधा नियमों के प्रति समझ एवं जागरूकता का न होना है। राजस्व संग्रहण को बढ़ाने एवं स्टाम्प प्रभार्य वाली कार्यवाहियों में निर्धारित स्टाम्प शुल्क की अदायगी को सुनिश्चित करने हेतु सभी विभागों के लिये शासन के वित्त विभाग द्वारा शासनादेश दिनांक 12 जून, 2019 द्वारा दिशा-निर्देश निर्गत किये गये हैं।
सचिव वित्त श्री अमित नेगी ने इस सम्बन्ध में जारी विज्ञप्ति में बताया है कि स्टाम्प शुल्क के माध्यम से प्राप्त होने वाला राजस्व वर्तमान में मुख्यतः भूमि/भवन के पंजीकरण के माध्यम से ही प्राप्त हो रहा है जबकि स्टाम्प शुल्क के माध्यम से प्राप्त होने वाला राजस्व अन्य स्त्रोतों से भी प्राप्त हो सकता है, जैसे- विभिन्न निकायों/संस्थानों द्वारा निर्मित दुकानों/भवनों आदि को विक्रय/लीज-ठेकों/अनुबंध के माध्यम आवंटित करना, पार्किंग ठेके, विभिन्न प्रकार के कार्यावंटन/शपथ-पत्र/समझौता अनुबंध/सहमति पत्र इत्यादि। प्रत्येक विभाग उन सभी कार्यवाहियों में उचित स्टाम्प का प्रयोग सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है ताकि नियमानुसार निर्धारित स्टाम्प शुल्क के माध्यम से राज्य को राजस्व की प्राप्ति हो सकें। इसके अतिरिक्त ऐसे अनेकों विषय है जिसमें उचित मूल्य के स्टाम्प का प्रयोग किया जा सकता है, इन सभी क्षेत्रों या विषयों का अन्वेषण भी आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 की धारा 17 में अनिवार्य पंजीकरण के श्रेणी में आने वाले विलेखों पर नियमानुसार प्रर्भा स्टाम्प शुल्क अदा होने तथा यथाविधि पंजीकृत होने के पश्चात् ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाय। भारतीय रजिस्टेªशन 1908 एवं भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 में इसकी स्पष्ट व्यवस्था है। (रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 की धारा-17 एवं 49, भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 की धारा-33 एवं 35)। स्पष्ट है कि यह प्रावधान बहुत व्यापक हैं, विलेखों का प्रभार स्टाम्प शुल्क अदा कर अनिवार्य पंजीकरण होने से जहां राज्य सरकार को स्टाम्प राजस्व प्राप्त होता रहेगा वहीं इन विलेखों से प्रभावित/लाभान्वित होने वाले पक्षकारों को प्राप्त होने वाले विधिक अधिकार सुरक्षित रहेंगें। सम्बन्धित विभागों को भी अनावश्यक विवादों से सुरक्षा।