जानिए👉 क्या है आरक्षण की प्रक्रिया, न्यूनतम कितनी जनसंख्या पर आरक्षण, हरिद्वार में पहले क्यों होते चुनाव

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पंचायतों के गठन से पूर्व आरक्षण निर्धारण की बड़ी कसरत की जाती है।

ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों तथा जिला पंचायतों के अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ी जाति वर्गों हेतु कितने पद आरक्षित होंगे, इसके निर्धारण का सामान्य सा फार्मूला है 👉

ब्लॉक में अनुसूचित जाति वर्ग हेतु –
कुल आरक्षित ग्राम पंचायतों की संख्या = ब्लाक में कुल ग्राम पंचायतें × ब्लाक में कुल अनुसूचित जाति वर्ग जनसंख्या ÷ ब्लॉक की कुल जनसंख्या।

उपरोक्त फार्मूला के अनुरूप ही अन्य जातियों के लिए कुल आरक्षित ग्राम पंचायतों का निर्धारण किया जाता है।

इसके उपरांत आरक्षित जाति वर्ग की कुल ग्राम पंचायतों में से एक चक्र अर्थात एक बार के चुनाव में उपरोक्त फार्मूले से प्राप्त कुल आरक्षित ग्राम पंचायतों को अधिकतम आरक्षित वर्ग की जनसंख्या वाली ग्राम पंचायतों को क्रमवार चयनित कर आरक्षित किया जाता है।

यूनतम 2 जनसंख्या होने पर भी पंचायत हो सकती है आरक्षित👉

गौरतलब बात यह है कि उत्तराखंड में पंचायत चुनाव उत्तर प्रदेश पंचायत राज नियमावली के आधार कराए जा रहे हैं । इसके अनुसार किसी ग्राम पंचायत में आरक्षित जाति वर्ग (अनु जा, अनु ज जा अथवा ओबीसी) के न्यूनतम 2 लोग भी हों तो वह ग्राम पंचायत उस वर्ग के लिए आरक्षित हो सकती है।

नोट 👉 उक्त के अनुरूप ही क्षेत्र पंचायतों तथा जिला पंचायत सीटों का आरक्षण निर्धारित भी किया जाता है।

हरिद्वार जनपद में उत्तराखंड के अन्य 12 जिलों से पहले गठित की जाती हैं त्रिस्तरीय पंचायतें 👉

वर्ष 1994- 95 में उत्तराखंड क्षेत्र में पृथक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन चरम पर था। इस बीच सन 1994 मेंं 73वें संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के उपरांत त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में आई। इसके उपरांत वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों की घोषणा हुई। क्योंकि उत्तराखंड भू-भाग में आंदोलन चल रहा था । अतः शेष उत्तर प्रदेश , जिसमें हरिद्वार जनपद शामिल था , मैं पंचायत चुनाव संपन्न कराए गए। उत्तराखंड के 12 जिलों में वर्ष 1996 में पंचायत चुनाव संपन्न हुए।

वर्ष 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ और इसी वर्ष उत्तर प्रदेश जिसमें हरिद्वार शामिल था, में पंचायत चुनाव भी संपन्न हुए। नवगठित उत्तराखंड राज्य में पंचायत चुनाव निर्धारित समय पर संपन्न नहीं किए जा सके और राज्य का पहला पंचायत चुनाव वर्ष 2003 मैं संपन्न हुआ।

अब जबकि हरिद्वार को उत्तराखंड में शामिल किया गया , अतः जनपद में गठित पंचायतों का कार्यकाल राज्य के अन्य 12 जनपदों से पूर्व ही अस्तित्व में आ गया।

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