आषाढ़ माह में यहाँ पूजी जाती है शीतला माता

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आषाढ़ शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि दिन रविवार 7 अगस्त को शीतला माता के दरबार में भक्तों की लंबी -लंबी कतारें देखने को मिल रही।प्रातः 5:00 बजे से ही यहां निरंतर भक्तों का तांता लगने लगा था दोपहर आते-आते तक यहां लंबी-लंबी कतारें लग गई। यह वृत्तांत है देहरादून अजबपुर क्षेत्र में स्थित माता मंदिर का। यहां शीतला माता को माता किशन कौर के नाम से पूजा जाता है इस मंदिर की स्थापना संवत 1805 में चंदेल परिवार द्वारा की गई। मंदिर स्थापना की कथा बड़ी रोचक है। बताते हैं कि एक बार अजबपुर क्षेत्र के रहने वाले चंदेल परिवार के लोग शाकुंभरी मंदिर यात्रा पर गए थे। उस वक्त पैदल यात्रा की जाती थी और यदि कोई साधन था तो बैलगाड़ी। यह परिवार बैलगाड़ी से शाकुंभरी माता के दर्शन कर देहरादून वापस लौट रहा था तो रास्ते में एक नन्हीं कन्या ने इन्हें हाथ देकर साथ चलने की बात कही। परंतु इन्होंने साथ चलने को मना कर दिया। जब वे लोग सपरिवार रास्ते में पड़ने वाले दरबार साहिब में झंडा मेला देखने को उतरे तो पता चला कि वह कन्या भी इनके साथ ही बैलगाड़ी में यहां आ गई थी। वह कन्या चूड़ी पहनाने वाले के पास गई और अपना हाथ आगे किया कि मुझे हरी -हरी चूड़ियां पहनाओ। उस दुकानदार ने इस कन्या की ओर ध्यान नहीं दिया और अन्य बड़ी महिलाओं को चूड़ी इत्यादि सामान देने में व्यस्त रहा। कुछ समय पश्चात उस कन्या ने पुनः चूड़ी वाले की ओर हाथ बढ़ाया और चूड़ी पहनाने को कहा। वह दुकानदार देखता है कि इस कन्या के एक हाथ पर चूड़ी पहनाई तो दूसरा हाथ आगे किया फिर तीसरा हाथ और फिर उसे कन्या के चार हाथ दिखे और यही दर्शन देने के उपरांत माता अंतर्ध्यान हो गई। जाते- जाते माता ने चंदेल परिवारों को अजबपुर क्षेत्र में स्थित पांच वृक्षों के निकट मंदिर स्थापित करने की बात कही। कहते हैं कि माता रानी की एक परम भक्त किशन कौर नामक महिला के नाम पर मंदिर स्थापना का संकेत भी माता ने स्वयं दिये।

माता मंदिर समिति के वर्तमान अध्यक्ष सुबोध चंदेल मंदिर के बारे में एक अन्य कहानी बताते हैं। इनके अनुसार इनके बुजुर्गों ने बताया कि पहले देहरादून शहर नहीं था । दूर-दूर तक खेत और जंगल फैले हुए थे। लोग पगडंडी नुमार रास्ते से आवागमन करते थे। इस क्षेत्र के लोग धार्मिक कार्यों, पूजन तथा बच्चों के चूड़ाकर्म /मुंडन हेतु सहारनपुर जनपद में स्थित शाकुंभरी देवी मंदिर में जाते थे । पगडंडी नुमा रास्ता राजपुर क्षेत्र से अजबपुर, क्लेमेंट टाउन होते हुए शाकुंभरी देवी मंदिर की ओर जाता था। रास्ते में अजबपुर में एक तालाब ( जहां आज माता मंदिर है)था, जो कि यात्रियों का प्रमुख विश्राम स्थल था।
पूर्व वर्णित कहानी के अनुसार ही चंदेलों का परिवार बैलगाड़ी से मां शाकुंभरी के दर्शन कर लौट रहा था। अजबपुर स्थित उक्त तालाब पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके साथ एक छोटी कन्या हाथों में एक पोटली लेकर यहां आ गई है। कुछ समय पश्चात वह कन्या गुम हो जाती है। चंदेल परिवार इसकी ढूंढ खोज करते हैं परंतु वह कन्या नहीं मिली। यह परिवार उक्त कन्या की पोटली वहीं छोड़कर अपने घर को चल दिया । रात्रि में वही कन्या हरकिशन चंदेल के स्वप्न में आई और कहा कि मैं शाकुंभरी देवी हूं और यह स्थान जहां पर पांच वृक्ष तथा तालाब है मुझे बेहद रमणीक लगा । यहीं पर मुझे स्थापित करो। इस प्रकार यहां हरकिशन चंदेल द्वारा मंदिर स्थापित किया गया। हरकिशन के पिता अजायब सिंह चंदेल थे जिनके नाम से इस क्षेत्र का नाम अजबपुर पड़ा।

इस मंदिर में मुख्य रूप से आषाढ़ मास मैं पूजा का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त चैत्र नवरात्रों में भी विशेष पूजन किया जाता है। यहां पूए/ गुलगुले प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। मंदिर में देहरादून अथवा निकटस्थ क्षेत्रों से ही नहीं अपितु अन्य राज्यों के दूरस्थ क्षेत्रों से भी भक्तजन आकर मां का आशीर्वाद लेते हैं। यहां बड़ी श्रद्धा से भक्तजन मन्नते मांगते हैं तथा बार-बार पूजन हेतु यहां आते हैं। भक्तों का कहना है कि मां उनकी प्रार्थना सुनती है तथा मन्नत पूरी करती हैं। लोगों के अटके हुए काम बनते हैं तथा कष्ट दूर होते हैं।

माता मंदिर समिति के वर्तमान पदाधिकारियों का विवरण
अध्यक्ष सुबोध चंदेल -9897581355, कोषाध्यक्ष कमलेश चंदेल- 9927135460, प्रबंधक आशीष रावत- 9897274090, सचिव कीर्ति चंदेल- 8077645650, उपसचिव दिनेश चंदेल-9458136614

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