केदार बने पंचायत चुनावों के लिए मुसीबत, बनी हुई है असमंजस की स्थिति

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आज उत्तराखंड राज्य में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव सामने हैं। परंतु पंचायत अधिनियम संशोधन विधेयक 2019 गले की फांस बना हुआ है। इसके अनुसार 2 से अधिक जीवित संतानों वाले प्रत्याशी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किए गए।

दो से अधिक जीवित संतानों वाले प्रत्याशियों को अयोग्य करार देने के खिलाफ माननीय हाईकोर्ट नैनीताल में छह याचिकाएं दायर की गई। इन पर सुनवाई हुई और जो फैसला आया वह स्पष्ट न होने के कारण केवल ग्राम पंचायत संस्था के लिए दो से अधिक संतानों वाले प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की छूट दिया जाना माना जा रहा है।

अब त्रिस्तरीय पंचायत संस्थाओं में से 2 संस्थाओं, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत, के चुनावों में दो से अधिक संतान वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।

👉 अगर यमुनोत्री के विधायक श्री केदार सिंह रावत विधानसभा में संशोधन प्रस्ताव न लाते तो आज पंचायत चुनाव में असमंजस की स्थिति न बनी होती।

गौरतलब है कि पंचायत राज अधिनियम संशोधन 2019 में दो से अधिक जीवित संतानों वाले प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने के विषय में स्पष्ट प्रस्ताव किया गया था। इसके अनुसार अधिनियम संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अगले 300 दिनों तक किसी उम्मीदवार की दो से अधिक जीवित संताने हों तो उसे पंचायत चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना गया । यह नियम संपूर्ण त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए मान्य था।

जब उक्त पंचायत अधिनियम संशोधन विधेयक विधानसभा के पटल पर रखा गया। यमुनोत्री विधानसभा क्षेत्र के विधायक श्री केदार सिंह रावत द्वारा इस पर संशोधन प्रस्ताव माननीय सदन के सम्मुख रखा गया। इसके अनुसार दो से अधिक जीवित संतानो वाले प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव लड़ने से वंचित किया जाना था। यह संशोधन प्रस्ताव सदन में ध्वनिमत से पारित हो गया। इस प्रस्ताव में एक कमी रही कि इसमें कोई “कट ऑफ डेट ” का उल्लेख नहीं था, कि फलां वर्ष कि फलां तारीख के उपरांत जिन के दो अधिक संताने हों उन पर प्रतिबंध लगे, जिस कारण इसे माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल में चुनौती दी गई।

अब जबकि माननीय न्यायालय में दायर याचिकाओं पर फैसला आ गया है तो असमंजस और भी बढ़ गया। अब जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत चुनाव में किस्मत आजमाने के लिए वर्षों से प्रयासरत प्रत्याशी ( जिनके दो से अधिक बच्चे हैं ) संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। ब्लॉक तथा जिलों मैं पंचायतों मैं राज करने के सारे समीकरण उलझे पड़े हैं।

काश केदार सिंह रावत ऐसा अधूरा संशोधन प्रस्ताव सदन में न रखते !

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