गरुड़ पर्वत पर सियासत जानिए क्या है गरुड़ पर्वत का महात्म्य…

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गरुड़ गंगा का पत्थर की महाप्रसाद है। गरुड़ शिला पर बैठकर गरुड़ ने हजारों वर्षों तक भगवान विष्णु की आराधना की थी। इसी पर्वत से निकलती है गरुड़ गंगा।

केदारखंड में वर्णन है कि–

भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि गरुड़ शीला ज्ञान प्रदान करने वाली है और यह शिला गरुड़ गंगा में स्थित है।
गरुड़ गंगा के पत्थरों को घर में या पूजा के स्थान पर रखना शुभ पुण्य दायक, अरिष्ट निवारक, धन ऐश्वर्य प्रदाता तथा विष्णु भक्ति प्रदान करने वाला माना जाता है।
भगवान बद्री विशाल की यात्रा मार्ग पर पीपलकोटी से कुछ दूरी पर पाखी गांव के समीप दर्शन होते हैं गरुड़ गंगा के। गरुड़ गंगा के दोनों ओर स्थित पाखी और टंगड़ी गांव का भू क्षेत्र बेहद रमणीक है।
पाखी गांव निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक एवं पंडित श्री प्रेम बल्लभ डिमरी जी कहते हैं कि तीर्थयात्री जब भी बद्री विशाल की यात्रा पर आयेंगे तो गरुड़ गंगा के दर्शन / पूजन अवश्य करें तथा गंगा के कुछ पत्थर साथ ले जाएं। इन्हें पूजा के स्थान पर स्थापित करें व नित्य पूजन करें। इस प्रकार भगवान गरुड़ के दर्शनों का महात्म्य प्राप्त होगा।

उक्तानुरूप गरुड़ पर्वत के महात्म्य के विषय में पुराणों में इसके पूजन से ऐश्वर्य, धन-संपदा, ज्ञान तथा सर्पदंश निवारण आदि का वर्णन मिलता है परंतु प्रसव पीड़ा निवारण जैसा वर्णन नहीं मिलता ।
तथापि अनेकानेक बार ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो गरुड़ पर्वत के पत्थरों का अनेक असाध्य रोगों के निवारण में सहायक होना प्रमाणित करते हैं।
पंडित प्रेम बल्लभ डिमरी जी एक संस्मरण सुनाते हैं कि एक बार पौड़ी से कोई रिटायर्ड ब्रिगेडियर यहां गंगा के पत्थर लेने आए थे। उन्होंने बताया कि गरुड़ गंगा में जो लाल पत्थर मिलते हैं उनको घिसकर पानी के साथ सेवन करने से बदहजमी/ अफारा के असाध्य रोगियों को भी लाभ मिलता है।

पूर्व ब्रिगेडियर ने एक अन्य उदाहरण दिया कि उनके गांव में किसी आदमी को कुष्ठ रोग हो गया था । जब उसने गरुड़ गंगा के पत्थर घिसकर लेप अपने दागों पर लगाया तो सारे दाग समाप्त हो गए।

ऐसे उदाहरण गरुड़ पर्वत की महत्ता को और वृहद रूप में दर्शाते हैं।

गरुड़ भगवान जी के मन्दिर में पंडित डिमरी जी

किसी भी रूप में यदि गरुड़ गंगा के पत्थरों को अथवा गरुड़ पर्वत पर आस्था रखें तो मन से गरुड़ भगवान का मंत्र जाप अवश्य करें-
ओम् गरुड़ाये नमः, ओम् गरुड़ाये नमः, ओम् गरुड़ाये नमः

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