*गढ़वाल विश्वविद्यालय का अभिनव प्रयास 👉👉👉 👉👉👉👉👉👉 “संवैधानिक मूल्य, सामाजिक न्याय और शिक्षा” विषय पर ऑनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन*

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हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में डॉ भीम राव अम्बेडकर जयंती के अवसर पर ” डॉ अम्बेडकर:संवैधानिक मूल्य, सामाजिक न्याय और शिक्षा” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला को मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने वीडियो सन्देश के जरिये सम्बोधित किया और कहा कि कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के बीच गढ़वाल विश्वविद्यालय का यह अभिनव प्रयास देश भर में एक नए उमंग, उल्लास और उत्साह को जागृत करेगा। और देश भर के विश्वविद्यालय इस प्रयास से सीखेंगे।

संविधान दिवस के दिन से शुरू हुए ये कार्यक्रम देश भर के विश्वविद्यालयों में पूरे साल चलेंगे। इन कार्यक्रमों में इस तरह का ऑनलाइन कार्यक्रम एक नया प्रयोग है जो कि शिक्षा और विचारों के आदान-प्रदान के लिए नए रास्तों को खोलेगा। इस तरह की पहल से विश्वविद्यालय, देश, समाज सभी का विकास होगा।


ऑनलाइन कार्यक्रम को वीडियो सन्देश के द्वारा गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो० अन्नपूर्णा नोटियाल ने भी सम्बोधित किया और कहा कि डॉ अम्बेडकर जयंती पर आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला का होना एक अच्छा संकेत है। संकट की इस घड़ी में इस तरह की ऑनलाइन कार्यशाला हो रही है इस से छात्रों के लिए उपयोगी होगा। आगे भी छात्र ऑनलाइन शैक्षिक माध्यमों से जुड़ेंगे तो यह भविष्य के लिए भी अच्छा संकेत होगा। संकट के इस समय में हमें सरकार द्वारा जारी आदेशों का पालन करना चाहिए। ताकि हम इस संकट से पार पा सके।

इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता महात्मा गांधीकेंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, बिहार के कुलपति प्रो संजीव शर्मा ने ” डॉ अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन” विषय पर कहा कि अंबेडकर भारतीय इतिहास में बहुत सारी पहचान रखने वाले व्यक्तित्व है। डॉक्टर अंबेडकर को हम भारत के प्रथम कानून मंत्री, सविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष , समाज सुधारक , एक पत्रकार के रूप में, एक विधिवेक्ता के रूप में, सामुदायिक आंदोलनों में नेतृत्व कारी भूमिका भूमिका निभाने वाले, समाज मे जारी कुप्रथाओं के विरोध करने वाले के रूप में और गाँधी जी से मतविरोधों के बावजूद पूना पैक्ट करने वाले नेता के रूप में जानते है। डॉ अंबेडकर सही अर्थों में एक निष्ठावान राष्ट्रवादी थे।

जिन्होंने भारतीयता को अपना कर ही गलत चीजों का विरोध किया। उनका समाजिक न्याय का सिद्धांत आज भी हमारे संविधान का प्राथमिक लक्ष्य है। न्यू इंडिया बनाने के लिए हमें अम्बेडकर के विचारों की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए राजनीतिक लोकतंत्र से पहले सामाजिक लोकतंत्र को स्थापित करने के डॉ अबेडकर के विचार की आवश्यकता है।

मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉ किरण लता डंगवाल ने ” डॉ अबेडकर का शिक्षा दर्शन” विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ आंबेडकर शिक्षा के बहुत बड़े हिमायती रहे है। बाबा साहेब ने शिक्षा को बदलाव और समानता लाने का हथियार माना। शिक्षा के द्वारा ही संकीर्णता से मुक्ति मिल सकती है। और यह शिक्षा समय के अनुकूल होंनी चाहिए इसी लिए संकट के इस समय मे ऑनलाइन शिक्षा माध्यमों की जरूरत पड़ रही है। समाज मे हर तबके की बराबरी के पक्षधर डॉ अम्बेडकर स्त्री शिक्षा के सबसे बड़े पैरोकार थे।

इस कार्यशाला को एस०सी०ई०आर०टी० नई दिल्ली की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ तनु भारती ने “डॉ अम्बेडकर की दृष्टि में समावेशन” विषय पर सम्बोधित किया और कहा कि डॉ अम्बेडकर समानता के सबसे बड़े पक्षधर रहे है। और यह समानता केवल जाति को खत्म कर बराबरी वाले समाज से ही नही बल्कि महिला पुरूष, मजदूरों के अधिकारों पर भी बाबा साहेब ने काम किया। डॉ अम्बेडकर ने लैंगिक समानता के विषय पर कहा कि किसी समाज की तरक्की इस बात पर निर्भर करती है कि उस समाज मे महिलाओं की स्थिति कैसी है। उनके समावेशी सिद्धांतों में समाज का हर वर्ग शामिल था। जिसके लिए आज भी प्रयास किए जा रहे है।

कार्यक्रम के समन्वय राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो० एम०एम० सेमवाल ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऑनलाइन कार्यशाला का यह अनुभव एक नया अनुभव है। अगर यह प्रयास सफल होता है तो हिमालयी क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में विमर्श को नया आयाम देगा।और यह प्रयास भविष्य के लिए भी उम्मीद की किरण बनेगा।
इस कार्यशाला की सचिव शिक्षा विभाग की डॉ सीमा धवन ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम शिक्षा लाभकारी सिद्ध होंगे। कोरोना के इस संकटकालीन समय का सदुपयोग इस तरह की कार्यशाला के द्वारा किया जाना बेहतरीन अनुभव है।
कार्यक्रम के अंत मे प्रो महावीर नेगी ने सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों के धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यशाला में डॉ० प्रशांत कंडारी, प्रोफेसर महावीर नेगी, डॉ० नितिन सती, डॉक्टर अरुण शेखर बहुगुणा, डॉ आर०एस० फरतियाल, प्रोफेसर राकेश कुँवर, प्रोफेसर आरएस नेगी, डॉक्टर जेपी भट्ट, डॉ सर्वेश उनियाल, डॉ ज्योति तिवाड़ी आदि मौजूद रहे।
एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के लिए उत्तराखंड के अलावा देश भर के 24 विश्वविद्यालयों के 286 छात्रों ने पंजीकरण किया। और इस कार्यक्रम के अंत मे छात्रों ने वक्ताओं से सवाल भी पूछे। जिनका जवाब वक्ताओं ने दिया।

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