सरकार के जीरो टॉलरेंस को पलीता लगा रहे विभागीय अधिकारी, ठेकेदारों के भुगतान पर कुंडली मारकर बैठे हैं।

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राज्य सेक्टर में जो निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं, लंबे समय से उनका भुगतान नहीं हो पा रहा है। ठेकेदार परेशान हैं।

यह हाल एक विभाग के नहीं बल्कि निर्माण कराने वाले सभी विभागों के हैं। लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग , जल निगम, जल संस्थान , उत्तराखंड निर्माण विभाग , ब्रिडकुल आदि कार्यदाई संस्थाओं द्वारा राज्य सेक्टर में कराए जा रहे कार्यों का ठेकेदारों को भुगतान ही नहीं हो पा रहा है , आखिर क्यों?

उत्तराखंड सरकार का एक जनहितकारी संकल्प है “जीरो टॉलरेंस ऑन करप्शन” । इस संकल्प को उपरोक्त विभागों ने ठेंगा दिखा रखा है। इनके असहयोगपूर्ण रवैए से विकास कार्यो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। गौरतलब है कि राज्य सेक्टर में राज्य के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में लगभग ₹50 करोड़ से अधिक लागत की योजनाएं गतिमान हैं। इन कार्यों को ठेकेदार यथासंभव समय पर पूर्ण करने को जुटे रहते हैैं। परंतु विडंबनावश इनके बिलों का भुगतान 1 वर्ष से भी अधिक समय तक लटकाया जा रहा है। स्वाभाविक है कि इससे कहीं ना कहीं गतिमान विकास कार्य अवरुद्ध हो रहे हैं।

प्रत्येक जिले में 5-10 बड़ी कंपनियां निर्माण कार्यो में जुटी हैं जबकि अनगिनत छोटे-छोटे ठेकेदार भी कार्य निष्पादित कर रहे हैं। अब जबकि इन ठेकेदारों के भुगतान नहीं हो रहे तो इनकी मायूसी इनके चेहरों पर स्पष्ट देखी जा रही है।

शासनादेश कहता है कि किसी भी अधिकारी की टेबल पर कोई फाइल 3 दिन से अधिक नहीं रुकनी चाहिए, तथापि विभागों के उच्चाधिकारी फाइलों पर कुंडली मारकर बैठे हैं। कागजों का खेल खेलने में माहिर यह अधिकारी ठेकेदारों को दफ्तरों के चक्कर कटवा रहे हैं।

आखिर होगा क्या देवभूमि उत्तराखंड का?

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